विचार ओर संकल्प
इश्वर की पूरी शक्ति को पूर्णरूप से समझ लेना आसान कार्य नहीं है इश्वर सारे जगत का श्रसटा , नियंता और स्वामी है और उसकी तह तक पंहुचना हमारे लिए असंभव है | हमें सारी शक्तिया उसीसे प्राप्त होती है हम उस विश्व शक्ति के एक केन्द्र मात्र है हममें जो कुछ शक्ति और सत्ता है , सब उसी की देंन है, सब उसी का प्रसाद है, हमारा अपना व्यक्तित्व भी उसी की छाया है |
यद्यपि हम उस विश्व शक्ति की रूपरेखा के बारे में कुछ नहीं जानते परन्तु इतना अवश्ये जानते है की विश्व शक्ति मनुष्ये में दो शक्तिया जन्म से देकर भेजती है १ विचार शक्ति २ शंकल्प शक्ति | जगत की रचना और विकाश इन्ही दो शक्तियों के सहारे होता है और यह दोनों शक्तिया इस रचना और विकाश के लिए जरुरी है , इनमे से किसी एक की कमी से भी विकाश और रचना का क्रम एकदम रुक जायेगा |
विचार शक्ति स्वंम अफाहिज है , यह सोच सकती है मानसिक ढांचे बना सकती है, कल्पना कर सकती है , परुन्तु वस्तु जगत में किसी महान परिवर्तन करने की क्षमता इसमें नहीं है | इसी तरह शंकल्प शक्ति स्वयम अंधी है ,उसे स्वयं अपना रास्ता नहीं दिखाई देता वह टटोलो टटोल कर चलती है, और टक्करे खाती फिरती है | विचार शक्ति के संयोग और सहयोग से ही उसे निर्माण शक्ति प्राप्त होती है जिसके सहारे वह वस्तु जगत में बड़े बड़े परिवर्तन करने में समर्थ होती है|
स्रष्टि के विकाश के आदि-अवस्था में संकल्प शक्ति की प्रधानता का परिचय मिलता है, परन्तु जैसे ही प्रक्रति संस्कृति को प्राप्त होती जाती है उत्तरोत्तर विचार शक्ति का प्राधान्य बढ़ता जाता है | और मनुष्ये के दर्जे पर पंहुच कर तो यह प्रधानता बिलकुल स्पष्ट हो जाती है और यह समझा जाता है की मनुष्ये और पशुओ में भेद करने वाली वस्तु यह बुद्धि है |
परन्तु मनुष्ये में जो विशेषता है वह उसकी चेतना विचार शक्ति में है | इसका अर्थ यह नहीं है की मनुष्ये के निचे श्रेणी के जानवर और पख्सियो में विचार शक्ति होती ही नहीं | सच तो यह है की अन्ये मानसिक क्रियाओ की तरह हमारी विचार शक्ति के निचे भी कई धरातल है | अचेतन,अर्द्धचेतन, सचेतन और उर्ध्वचेतन , विकाश के आदि में अचेतन विचार शक्ति के हाथ में नियंत्रण रहता है, और धीरे धीरे विकाश में वही विचार शक्ति केन्द्रीभूत होकर अर्द्ध चेतन अवस्था में गुजर कर सचेतन होजाती है | इस सचेतन अवस्था में कार्यक्रम की बागडोर अचेतन और जड से निकल कर सचेतन के हाथ में पंहुच जाती है , और इस अवस्था में बुद्धि का प्रधान्ये होता है परन्तु यह विकाश की अंतिम सीडी नहीं है | इसके आगे भी एक उर्ध्व चेतन अवस्था है, जिसको योगी लोग समाधी के नाम से पुकारते है , और इस अवस्था में नेतृत्व बुधि से निकलकर बोधि के हाथ में चला जाता है |
विकाश के प्रत्येक स्थल पर विचार शक्ति का अस्तित्व मानना अनिवार्य है| केवल संकल्प के सहारे विकाश का काम नहीं चल सकता , कारण की संकल्प में केवल शक्ति ही शक्ति है उस शक्ति का उपयोग किस प्रकार से किया जाये की उसमे विकाश का कार्ये अग्रसर हो सके यह जानने की शक्ति उसमें नहीं है |
बाह्य परिस्थिति को चेतन अथवा अचेतन रूप से समझ कर ही संकल्प शक्ति अपना कार्येक्रम निश्चित कर सकती है | संकल्प शक्ति के विकाश हेतु प्रथम सीडियों कोई स्वतंत्र क्रिया नहीं होती , केवल प्रतिक्रिया होती है ,और शक्ति का रूप जो इस प्रतिक्रिया में प्रति बिम्बित होता है बिना विचार शक्ति के संभव नहीं है |
जिस तरह विचार शक्ति के चार धरातल है –अचेतन, अर्धचेतन, सचेतन, उर्ध्वचेतन इस तरह शंकल्प शक्ति के भी चार धरातल है | इन चारो धरतालो को आधुनिक पश्चिमी मनोवेज्ञानिक Unconscious , Sub conscious , conscious or Super conscious States of mind कहते है और इन्ही को हमारे प्राचीन मुनियो ने सुषुप्ति, स्वप्न, जाग्रत, और समाधी कहा है | वास्तव में यह हमारे मनस्तत्व की अवस्थाये है , उसके समस्त जीवन में चाहे वे विचार शक्ति से सम्बन्ध रखता हो अथवा संकल्प शक्ति से सदेव ही अपनेको प्रति बिम्बित करता रहती है | यदि पशु मनुष्ये की तरह सोचता नहीं , तो उसकी प्रतिक्रिया भी मनुष्ये की तरह नहीं होती | दोनों में सचेतन भाव का अभाव रहता है |अर्थात जिस ऊंचाई और मानसिक विकास के धरातल पर मनुष्ये या पशु जाती की विचार शक्ति पंहुचती है उसी के अनुसार उसी धरातल पर उस जाती की संकल्प शक्ति भी पंहुच जाती है |
संसार के तत्व-वित्त विचार शक्ति का पख्स ले ल्रे कर बहुत दिनों से आपस में विवाद करते आए है | किसी ने विचार को प्रधानता दी है किसी ने सकल्प को | किसी ने यह प्रमाणित करने का प्रयाश किया है की संकल्प केवल विचारशक्ति का ही एक रूप है, और इसके विपरीत किसी ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है की विचार शक्ति भी संकल्प सकती का ही एक रूप है |
इन दोनों परस्पर विरोधी विचार धाराओ में अंसिक सत्ये वर्तमान है | पूर्ण सत्ये किसी में भी नहीं है | क्योकि यह दोनों विचार धराए विचार को संकल्प से और संकल्प को विचार से प्रथक करके देखती है | वास्तविक जीवन में संकल्प और विचार पृथक पृथक नहीं है , और न उनको पृथक करके देखा जा सकता है | प्रत्येक विचार के भीतर अपने को प्रकट करने की शक्ति निहित होती है , उसका जीवन विस्तार चाहता है और वह बहए जगत पर अपनी छाप लगाना चाहता है
संसार की गाड़ी इन्ही दो पहियों पर चलती है – एक विचार सकती का और दूसरा संकल्प शक्ति का | मनुष्ये के जीवन में भी सफलता की कुंजी इन दोनों के हाथ में है | मनुष्ये का काम है किसी विचार शक्ति और शंकल्प सक्ती दोनों कोजग्रत करे | बिना विचार शक्ति के संकल्प शक्ति अंधी है , और बिना संकल्प शक्ति के विचार शक्ति अफाहिज है |
इन दोनों के पारस्परिक संयोग और सहयोग में ही उत्थान और सफलता का रह्श्ये है | यदि विचार शक्ति संकल्प शक्ति के सहयोग में कार्ये नहीं करती , तो कोरी कल्पना बन कर रह जाती है , वास्तु जगत को प्रभावित करने की क्षमता उसमे नहीं आती,और थोड़ी सी उन्नति करके एक पंख पर उड़ने वाली चिड़िया की तरह दोचार आदमक चलकर ही गिर जाती है | इसी तरह संकल्प शक्ति भी विचार शक्ति का सहयोग नहीं पाकर अंधी रहती है और उसे अपना मार्ग नहीं सूझता | टेली के बेल की तरह निरंतर चलते रहने पर भी वह अपने को वही पर पाती है जहा से चली थी | उसका सारा परिश्रम सारा त्याग व्यर्थ जाता है | अत: इन दोनों सक्तियो को जगाना ही प्रयाप्त नहीं है , परन्तु इनका अछी तरह संचालन और नियंत्रण में रखना आवश्यक है की इनको एक दूसरे से सहायता मिल सके एक से दूसरी का उन्नति का मार्ग स्पशट होता रहे अन्यथा वांछित सफलता मिलना कठिन है |
ये विश्व शक्ति सत्ता का भंडार है, जो विचार और संकल्प का आश्रय है; जिससे हम पैदा होते है , जिसमे हम रहते है, और जिसमे हम अंत में लय हो जाते है ; जिसके की हम केन्द्र मात्र है; उससे हम व्यक्तित्व कि अक्षय शक्ति, जो विचार और संकल्प के सम्बन्ध संयोग से बनती है , किन साधनों से प्राप्त कर सकते है | यही हमारे सामने मुख्य प्रश्न है | इनका उत्तर हमको ढूँढना है |
इश्वर की पूरी शक्ति को पूर्णरूप से समझ लेना आसान कार्य नहीं है इश्वर सारे जगत का श्रसटा , नियंता और स्वामी है और उसकी तह तक पंहुचना हमारे लिए असंभव है | हमें सारी शक्तिया उसीसे प्राप्त होती है हम उस विश्व शक्ति के एक केन्द्र मात्र है हममें जो कुछ शक्ति और सत्ता है , सब उसी की देंन है, सब उसी का प्रसाद है, हमारा अपना व्यक्तित्व भी उसी की छाया है |
यद्यपि हम उस विश्व शक्ति की रूपरेखा के बारे में कुछ नहीं जानते परन्तु इतना अवश्ये जानते है की विश्व शक्ति मनुष्ये में दो शक्तिया जन्म से देकर भेजती है १ विचार शक्ति २ शंकल्प शक्ति | जगत की रचना और विकाश इन्ही दो शक्तियों के सहारे होता है और यह दोनों शक्तिया इस रचना और विकाश के लिए जरुरी है , इनमे से किसी एक की कमी से भी विकाश और रचना का क्रम एकदम रुक जायेगा |
विचार शक्ति स्वंम अफाहिज है , यह सोच सकती है मानसिक ढांचे बना सकती है, कल्पना कर सकती है , परुन्तु वस्तु जगत में किसी महान परिवर्तन करने की क्षमता इसमें नहीं है | इसी तरह शंकल्प शक्ति स्वयम अंधी है ,उसे स्वयं अपना रास्ता नहीं दिखाई देता वह टटोलो टटोल कर चलती है, और टक्करे खाती फिरती है | विचार शक्ति के संयोग और सहयोग से ही उसे निर्माण शक्ति प्राप्त होती है जिसके सहारे वह वस्तु जगत में बड़े बड़े परिवर्तन करने में समर्थ होती है|
स्रष्टि के विकाश के आदि-अवस्था में संकल्प शक्ति की प्रधानता का परिचय मिलता है, परन्तु जैसे ही प्रक्रति संस्कृति को प्राप्त होती जाती है उत्तरोत्तर विचार शक्ति का प्राधान्य बढ़ता जाता है | और मनुष्ये के दर्जे पर पंहुच कर तो यह प्रधानता बिलकुल स्पष्ट हो जाती है और यह समझा जाता है की मनुष्ये और पशुओ में भेद करने वाली वस्तु यह बुद्धि है |
परन्तु मनुष्ये में जो विशेषता है वह उसकी चेतना विचार शक्ति में है | इसका अर्थ यह नहीं है की मनुष्ये के निचे श्रेणी के जानवर और पख्सियो में विचार शक्ति होती ही नहीं | सच तो यह है की अन्ये मानसिक क्रियाओ की तरह हमारी विचार शक्ति के निचे भी कई धरातल है | अचेतन,अर्द्धचेतन, सचेतन और उर्ध्वचेतन , विकाश के आदि में अचेतन विचार शक्ति के हाथ में नियंत्रण रहता है, और धीरे धीरे विकाश में वही विचार शक्ति केन्द्रीभूत होकर अर्द्ध चेतन अवस्था में गुजर कर सचेतन होजाती है | इस सचेतन अवस्था में कार्यक्रम की बागडोर अचेतन और जड से निकल कर सचेतन के हाथ में पंहुच जाती है , और इस अवस्था में बुद्धि का प्रधान्ये होता है परन्तु यह विकाश की अंतिम सीडी नहीं है | इसके आगे भी एक उर्ध्व चेतन अवस्था है, जिसको योगी लोग समाधी के नाम से पुकारते है , और इस अवस्था में नेतृत्व बुधि से निकलकर बोधि के हाथ में चला जाता है |
विकाश के प्रत्येक स्थल पर विचार शक्ति का अस्तित्व मानना अनिवार्य है| केवल संकल्प के सहारे विकाश का काम नहीं चल सकता , कारण की संकल्प में केवल शक्ति ही शक्ति है उस शक्ति का उपयोग किस प्रकार से किया जाये की उसमे विकाश का कार्ये अग्रसर हो सके यह जानने की शक्ति उसमें नहीं है |
बाह्य परिस्थिति को चेतन अथवा अचेतन रूप से समझ कर ही संकल्प शक्ति अपना कार्येक्रम निश्चित कर सकती है | संकल्प शक्ति के विकाश हेतु प्रथम सीडियों कोई स्वतंत्र क्रिया नहीं होती , केवल प्रतिक्रिया होती है ,और शक्ति का रूप जो इस प्रतिक्रिया में प्रति बिम्बित होता है बिना विचार शक्ति के संभव नहीं है |
जिस तरह विचार शक्ति के चार धरातल है –अचेतन, अर्धचेतन, सचेतन, उर्ध्वचेतन इस तरह शंकल्प शक्ति के भी चार धरातल है | इन चारो धरतालो को आधुनिक पश्चिमी मनोवेज्ञानिक Unconscious , Sub conscious , conscious or Super conscious States of mind कहते है और इन्ही को हमारे प्राचीन मुनियो ने सुषुप्ति, स्वप्न, जाग्रत, और समाधी कहा है | वास्तव में यह हमारे मनस्तत्व की अवस्थाये है , उसके समस्त जीवन में चाहे वे विचार शक्ति से सम्बन्ध रखता हो अथवा संकल्प शक्ति से सदेव ही अपनेको प्रति बिम्बित करता रहती है | यदि पशु मनुष्ये की तरह सोचता नहीं , तो उसकी प्रतिक्रिया भी मनुष्ये की तरह नहीं होती | दोनों में सचेतन भाव का अभाव रहता है |अर्थात जिस ऊंचाई और मानसिक विकास के धरातल पर मनुष्ये या पशु जाती की विचार शक्ति पंहुचती है उसी के अनुसार उसी धरातल पर उस जाती की संकल्प शक्ति भी पंहुच जाती है |
संसार के तत्व-वित्त विचार शक्ति का पख्स ले ल्रे कर बहुत दिनों से आपस में विवाद करते आए है | किसी ने विचार को प्रधानता दी है किसी ने सकल्प को | किसी ने यह प्रमाणित करने का प्रयाश किया है की संकल्प केवल विचारशक्ति का ही एक रूप है, और इसके विपरीत किसी ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है की विचार शक्ति भी संकल्प सकती का ही एक रूप है |
इन दोनों परस्पर विरोधी विचार धाराओ में अंसिक सत्ये वर्तमान है | पूर्ण सत्ये किसी में भी नहीं है | क्योकि यह दोनों विचार धराए विचार को संकल्प से और संकल्प को विचार से प्रथक करके देखती है | वास्तविक जीवन में संकल्प और विचार पृथक पृथक नहीं है , और न उनको पृथक करके देखा जा सकता है | प्रत्येक विचार के भीतर अपने को प्रकट करने की शक्ति निहित होती है , उसका जीवन विस्तार चाहता है और वह बहए जगत पर अपनी छाप लगाना चाहता है
संसार की गाड़ी इन्ही दो पहियों पर चलती है – एक विचार सकती का और दूसरा संकल्प शक्ति का | मनुष्ये के जीवन में भी सफलता की कुंजी इन दोनों के हाथ में है | मनुष्ये का काम है किसी विचार शक्ति और शंकल्प सक्ती दोनों कोजग्रत करे | बिना विचार शक्ति के संकल्प शक्ति अंधी है , और बिना संकल्प शक्ति के विचार शक्ति अफाहिज है |
इन दोनों के पारस्परिक संयोग और सहयोग में ही उत्थान और सफलता का रह्श्ये है | यदि विचार शक्ति संकल्प शक्ति के सहयोग में कार्ये नहीं करती , तो कोरी कल्पना बन कर रह जाती है , वास्तु जगत को प्रभावित करने की क्षमता उसमे नहीं आती,और थोड़ी सी उन्नति करके एक पंख पर उड़ने वाली चिड़िया की तरह दोचार आदमक चलकर ही गिर जाती है | इसी तरह संकल्प शक्ति भी विचार शक्ति का सहयोग नहीं पाकर अंधी रहती है और उसे अपना मार्ग नहीं सूझता | टेली के बेल की तरह निरंतर चलते रहने पर भी वह अपने को वही पर पाती है जहा से चली थी | उसका सारा परिश्रम सारा त्याग व्यर्थ जाता है | अत: इन दोनों सक्तियो को जगाना ही प्रयाप्त नहीं है , परन्तु इनका अछी तरह संचालन और नियंत्रण में रखना आवश्यक है की इनको एक दूसरे से सहायता मिल सके एक से दूसरी का उन्नति का मार्ग स्पशट होता रहे अन्यथा वांछित सफलता मिलना कठिन है |
ये विश्व शक्ति सत्ता का भंडार है, जो विचार और संकल्प का आश्रय है; जिससे हम पैदा होते है , जिसमे हम रहते है, और जिसमे हम अंत में लय हो जाते है ; जिसके की हम केन्द्र मात्र है; उससे हम व्यक्तित्व कि अक्षय शक्ति, जो विचार और संकल्प के सम्बन्ध संयोग से बनती है , किन साधनों से प्राप्त कर सकते है | यही हमारे सामने मुख्य प्रश्न है | इनका उत्तर हमको ढूँढना है |
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