मानव जीवन की सफलता के संदर्भ में महाकवि तुलसीदास जी ने श्री राम चरितमानस में लिखा है कि:-
चौपाई(1):-
बड़े भाग्य मानस तनु पावा !
सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा !!
चौपाई(2):-
साधन धाम मोक्षकर द्वारा !
पायन जो परलोक संवारा !!
चौपाई(3):-
नर तनु पाय विषय मन देही !
पलटी सुधा ते नर विष लेही !!
चौपाई(4):-
जो न तरहि भाव सागर, नर समाज अस पाय !
सो कृत निंदक मंद मति, आतम हनि गति जाय !!
भावार्थ:- अर्थात किसी जीव को बड़े भाग्य से, कितने ही जन्मों के पुन्यकर्मो के फलस्वरूप मनुष्य जीवन मिलता है! अत: इसको व्यर्थ ही गवाना नही चाहिए, इस जीवन को प्रभु के चरणों में अर्पित करना चाहिए ! और जो भगवत्कृपा से ऐसे मनुष्य शरीर को पाकर संसार सागर से पार होने का प्रयास नहीं करता है, वह घोर निंदक मंदमति आत्म हत्यारों कि गति प्राप्त करता है ! जिसके लिए उपनिषदों में कहा गया है:-
असूर्या: नामते लोका: अन्धेन तमसा बृता: !
तान्स्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्म हनो जना: !!
No comments:
Post a Comment