कर्म क्या है :-
(1)चौपाई:-
(1)चौपाई:-
काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता !
निज कृत करम भोग सबु भ्राता !!
भावार्थ:- महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस के अयोध्या कांड में श्री लक्ष्मणजी निषादराज से कहते है- कि हे भाई ! कोई किसी को सुख दुःख देने वाला नहीं है, सभी लोग अपने किये हुए कर्मों का फल भोगते है ! अर्थात जैसी करनी वैसी भरनी !
(2)चौपाई :-
कर्म प्रधान विश्व करि राखा !
जो जस करहि सो तस फलु चाखा !!
भावार्थ:- अर्थात इस संसार में कर्म ही प्रधान है, जो जैसा करता है वैसा ही फल पाता है !
"जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल !"
भगवतगीता शलोक:-
यादृशं कुरुते कर्म, तादृशं फलमश्नुते !
और
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं !
भावार्थ:- गीता में भगवान कृष्ण कहते है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल पाता है !
और मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मो के फल अवश्य ही भोगने पड़ते है !
और मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मो के फल अवश्य ही भोगने पड़ते है !
इसलिए कहावत है कि "बोया पेड़ बबूल का, आम कहा ते खाय "!
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