तुलसी दास जी ने कहा है " शकल पदारथ है जग माहि , कर्म हीन नर पावत नाही "
योग शास्त्र का यह एक वैज्ञानिक और ठोस सिद्धांत है जो व्यक्ति अपने मन में लगातार किसी एक विषय पर लगातार सोचता है तो ऐसा समझे, कि वो बीज बुवाई का कार्य कर रहा है | उसके द्वारा जिस विषय पर चिंतन किया गया है वो सूक्ष्म रूप से उसके अंदर पलने लगेगा और एक दिन स्थूल रूप में उसको वो प्राप्त होगा | ऐसा कभी हो ही नहीं सकता व्यक्ति जिस विषय के बारे में विचार करे उसको स्थूल रूप से ना मिले |
विचार भावना और चिंतन, यह ध्यान कि अपूर्ण अवस्था है | इनमे जब द्रड़ता आती है | येही अवस्था ध्यान बन जाती है | और ज्ञानी पुरुष इसी ध्यान को चिंतामणि कहते है यह यथार्थ सत्य है | क्योंकी चिंतामणि को हाथ में रखकर जिस वास्तु कि इच्छा कि जाये वह वस्तु तत्काल प्राप्त हो जाती है | वैसे ही इस ध्यानरूपी चिंतामणि से मनुष्य को मनचाही वस्तु मिल सकती है | किन्तु इस ध्यान रूपी चिंतामणि को कुछ लोग ही जीवन में सकारात्मक रूप से उपयोग करते है क्यों की ज्यादातर लोग तो इस विषय कि जानकारी भी नहीं रखते है | और नकारात्मक सोच के लोग इसी ध्यान रूपी चितामणि दुरपयोग कर दुखी रहते है | ऐसे लोग, जो चाहिए उसका चिंतन नहीं करते अपितु जो नहीं चाहिए उसका चिंतन करते है | जैसे मेरे ऊपर कर्ज है में दुर्भाग्यशाली हूँ ऐसा सोचने पर यह भी एक प्रकार का अक्रिय ध्यान ही हुवा इसकी वजह से उसके जीवन में कर्ज और दुःख स्वत: ही आने लगते है |
मन एक ऐसा यंत्र है | जिसमे प्रति क्षण कोई न कोई विचार आते ही रहते है | मन विचार करे बिना एक क्षण भी मुक्त नहीं रह सकता | इस प्रकार ध्यान रूपी चिंतामणि प्रत्येक मनुष्ये में जन्म से ही उपलब्ध है इसका सही उपयोग करके जीवन के हर लक्ष्य को आसानी से पाया जा सकता है जीवन कि आकांक्षाये व इच्छाए सहज में ही सफल होती है |
सारांश यह है कि मनुष्ये अपनी भावना और विचारों के अनुसार दु:खी या सुखी , सफल या असफल होता है | यंहा मनोभाव व विचार का कारक मन है अत: मन को सुधारना मानव का पहला कर्तव्ये है | हमारा मन किन विषयो पर चिंतन करता रहता है उस पर ध्यान देना आवश्यक है कि कही वो नकारात्मक तो नहीं सोच रहा है यदि आज तुम निर्धन, बीमार या दब्बू हो एवं अपने विचारों को प्रकट करने कि शक्ती तुम में नहीं है तो निश्चित समझो कुछ समय पहले यह विचार व चिंतन तुमने अवश्य ही किया होगा उसी का परिणाम है जो आज तुम भुगत रहे हो | तात्पर्य यह है कि सूक्ष्म रूप में किसी विषय पर सोचे बगेर स्थूल रूप में वो जीवन में आ ही नहीं सकती | यही अध्यात्म विद्या का त्रिकाल बाधित अनुभव सिद्ध अटल सिद्धांत है |यह सम्पूर्ण स्रष्टि इश्वर के मन में सूक्ष्म रूप में विध्येमान थी | इश्वर के संकल्प बल से प्रगट हुई है | ऐसे ही प्रथ्वी पर बड़े बड़े शहर, मकान, बगीचे, रेल, विमान, टेलीफोन, कंप्यूटर, इन्टरनेट आदि नए नए आविष्कार हुए |पहले इन्हें बनाने हेतु वैज्ञानिको के मन में सूक्ष्म रूप से विचार आये तत्पश्चात प्रगट रूप में वो इन्हें खोज पाए इसी सिद्धांत को भगवान कृष्ण ने गीता में इस प्रकार बताया है :-
“नासतो विद्यते भावो नाभावो विध्यत: सत्:”
अर्थात इस जगत में जो पदार्थ किसी भी रूप में बिल्कुल है ही नहीं वो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सकता | और जो पदार्थ विध्येमान है उसका अत्यंत अभाव या नाश हो ही नहीं सकता | इसलिए तुम अपने मन में हमेशा आशा, उत्साह, दर्व्ये, सम्पति, बल, सामर्थ्ये आदि विषयो का दृढ चिंतन करते रहो | निश्चय समझो एक दिन स्थूल रूप धारण कर ये सभी तुम्हे प्राप्त होंगे ही | दुनिया कि कोई शक्ती ऐसा होने में अड़चन नहीं डाल सकती है|
किसी वस्तु विशेष को यदि तुम जल्दी प्राप्त करना चाहते हो तो उस वस्तु का नाम कागज पर लिख कर अपने पूजा रूम में लगादो और २० मिनट उसी का चिंतन करो और सोचो मह्शूस करो अमुक कार्ये , अमुक वस्तु मुझे मिलने ही वाली है कुछ समय बाद वो अमुक कार्ये होगा ,अमुक वस्तु मिल जायेगी { शुरू में कोई भी वस्तु या कार्ये अपनी पहुँच तक काही सोचे } जब एक कार्ये होजाये तब दूसरे के लिए विचार करे |
योग शास्त्र का यह एक वैज्ञानिक और ठोस सिद्धांत है जो व्यक्ति अपने मन में लगातार किसी एक विषय पर लगातार सोचता है तो ऐसा समझे, कि वो बीज बुवाई का कार्य कर रहा है | उसके द्वारा जिस विषय पर चिंतन किया गया है वो सूक्ष्म रूप से उसके अंदर पलने लगेगा और एक दिन स्थूल रूप में उसको वो प्राप्त होगा | ऐसा कभी हो ही नहीं सकता व्यक्ति जिस विषय के बारे में विचार करे उसको स्थूल रूप से ना मिले |
विचार भावना और चिंतन, यह ध्यान कि अपूर्ण अवस्था है | इनमे जब द्रड़ता आती है | येही अवस्था ध्यान बन जाती है | और ज्ञानी पुरुष इसी ध्यान को चिंतामणि कहते है यह यथार्थ सत्य है | क्योंकी चिंतामणि को हाथ में रखकर जिस वास्तु कि इच्छा कि जाये वह वस्तु तत्काल प्राप्त हो जाती है | वैसे ही इस ध्यानरूपी चिंतामणि से मनुष्य को मनचाही वस्तु मिल सकती है | किन्तु इस ध्यान रूपी चिंतामणि को कुछ लोग ही जीवन में सकारात्मक रूप से उपयोग करते है क्यों की ज्यादातर लोग तो इस विषय कि जानकारी भी नहीं रखते है | और नकारात्मक सोच के लोग इसी ध्यान रूपी चितामणि दुरपयोग कर दुखी रहते है | ऐसे लोग, जो चाहिए उसका चिंतन नहीं करते अपितु जो नहीं चाहिए उसका चिंतन करते है | जैसे मेरे ऊपर कर्ज है में दुर्भाग्यशाली हूँ ऐसा सोचने पर यह भी एक प्रकार का अक्रिय ध्यान ही हुवा इसकी वजह से उसके जीवन में कर्ज और दुःख स्वत: ही आने लगते है |
मन एक ऐसा यंत्र है | जिसमे प्रति क्षण कोई न कोई विचार आते ही रहते है | मन विचार करे बिना एक क्षण भी मुक्त नहीं रह सकता | इस प्रकार ध्यान रूपी चिंतामणि प्रत्येक मनुष्ये में जन्म से ही उपलब्ध है इसका सही उपयोग करके जीवन के हर लक्ष्य को आसानी से पाया जा सकता है जीवन कि आकांक्षाये व इच्छाए सहज में ही सफल होती है |
सारांश यह है कि मनुष्ये अपनी भावना और विचारों के अनुसार दु:खी या सुखी , सफल या असफल होता है | यंहा मनोभाव व विचार का कारक मन है अत: मन को सुधारना मानव का पहला कर्तव्ये है | हमारा मन किन विषयो पर चिंतन करता रहता है उस पर ध्यान देना आवश्यक है कि कही वो नकारात्मक तो नहीं सोच रहा है यदि आज तुम निर्धन, बीमार या दब्बू हो एवं अपने विचारों को प्रकट करने कि शक्ती तुम में नहीं है तो निश्चित समझो कुछ समय पहले यह विचार व चिंतन तुमने अवश्य ही किया होगा उसी का परिणाम है जो आज तुम भुगत रहे हो | तात्पर्य यह है कि सूक्ष्म रूप में किसी विषय पर सोचे बगेर स्थूल रूप में वो जीवन में आ ही नहीं सकती | यही अध्यात्म विद्या का त्रिकाल बाधित अनुभव सिद्ध अटल सिद्धांत है |यह सम्पूर्ण स्रष्टि इश्वर के मन में सूक्ष्म रूप में विध्येमान थी | इश्वर के संकल्प बल से प्रगट हुई है | ऐसे ही प्रथ्वी पर बड़े बड़े शहर, मकान, बगीचे, रेल, विमान, टेलीफोन, कंप्यूटर, इन्टरनेट आदि नए नए आविष्कार हुए |पहले इन्हें बनाने हेतु वैज्ञानिको के मन में सूक्ष्म रूप से विचार आये तत्पश्चात प्रगट रूप में वो इन्हें खोज पाए इसी सिद्धांत को भगवान कृष्ण ने गीता में इस प्रकार बताया है :-
“नासतो विद्यते भावो नाभावो विध्यत: सत्:”
अर्थात इस जगत में जो पदार्थ किसी भी रूप में बिल्कुल है ही नहीं वो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सकता | और जो पदार्थ विध्येमान है उसका अत्यंत अभाव या नाश हो ही नहीं सकता | इसलिए तुम अपने मन में हमेशा आशा, उत्साह, दर्व्ये, सम्पति, बल, सामर्थ्ये आदि विषयो का दृढ चिंतन करते रहो | निश्चय समझो एक दिन स्थूल रूप धारण कर ये सभी तुम्हे प्राप्त होंगे ही | दुनिया कि कोई शक्ती ऐसा होने में अड़चन नहीं डाल सकती है|
किसी वस्तु विशेष को यदि तुम जल्दी प्राप्त करना चाहते हो तो उस वस्तु का नाम कागज पर लिख कर अपने पूजा रूम में लगादो और २० मिनट उसी का चिंतन करो और सोचो मह्शूस करो अमुक कार्ये , अमुक वस्तु मुझे मिलने ही वाली है कुछ समय बाद वो अमुक कार्ये होगा ,अमुक वस्तु मिल जायेगी { शुरू में कोई भी वस्तु या कार्ये अपनी पहुँच तक काही सोचे } जब एक कार्ये होजाये तब दूसरे के लिए विचार करे |
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