इस लेख का प्रिंट निकाल लेवे एवं इसको रोज सुबह जल्दी उठकर तीन बार पाठ करे और एकाग्र होकर इसका ध्यान करने से इच्छा शक्ति निरंतर बढती है और सभी कामो में सफलता मिलती है | इसके परिणाम सात दिन के भीतर ही मिलने लग जाते है :
अब में वह मनुष्य नहीं हूँ की अपना संकल्प बदलता रहता हूँ | मैंने पक्का इरादा कर लिया है की दूसरो की सम्मति से कदापि अपना निश्चय नहीं बदलूँगा | में अब कभी भी अपने भाग्य और किस्मत को दोष नहीं दूंगा | में जो कुछ भी निश्चय करता हूँ उसको ह्रदय में पक्का और स्थिर कर लेता हूँ | मेरे निश्चय से मुझे कोई नहीं डिगा सकता है | जिनकी इच्छा शक्ति दुर्बल होती है , हिचकिचाते रहते है, और आगे पीछे करते रहते है किन्तु मुझसे यह आदत सर्वथा दूर हो गयी है | और अब में निश्चित सिद्वांत का व्यक्ति हूँ | दूसरो के अनिष्ट विचार मुझे प्रभावित नहीं कर सकते है | जो विचार मेरे सम्मुख उपस्थित होता है उस पर में पूर्ण रूप से विचार करता हूँ और खूब अच्छी प्रकार समझ बूझ कर अपना निश्चय स्थिर करता हूँ | में अपने निश्चय के विरुद्ध कोई काम नहीं करता | में अपने हृदय में किसी भी भ्रम को , संशय शंका को , वहम को , संदेह को कभी स्थान नहीं देता |
कोई भी शुद्र और निकृष्ट विचार मेरे हृदय में आरूढ़ नहीं रह सकता | में परिस्थितियो का दास नहीं हूँ | में कभी भी निश्चित मार्ग से एक कदम भी पीछे नहीं हटता | अप्रिय प्रसंग और परिस्थिति मुझे अपने दृढ निश्चय से चलायमान नहीं कर सकती | संसार की बाहरी वस्तुओ और साधनों पर में आश्रित नहीं रहता | में अपने आप की शक्ति पर ही आश्रित हूँ | मुझे अपने निश्चय में दृढ़ता है , स्थिरता है , इसलिए में अपनी सब मानसिक अवस्थाओ का स्वामी हूँ | में अपने भाग्य का विधाता हूँ | मेरे मानस क्षेत्र में व्यर्थ का मानसिक संग्राम उधम नहीं मचाता | मुझे कोई मानसिक व्यथा परेशान नहीं करती क्यों की परस्पर विरोधी इच्छाए मुझ में नहीं उठती | मेरे अंतर कर्ण में सदा सर्वदा सुमति की पवित्र धरा बहती है और मेरी इच्छा शक्ति को बलवती बना रही है | जिससे में अपने जीवन का स्वामी बन रहा हूँ |
अब में वह मनुष्य नहीं हूँ की अपना संकल्प बदलता रहता हूँ | मैंने पक्का इरादा कर लिया है की दूसरो की सम्मति से कदापि अपना निश्चय नहीं बदलूँगा | में अब कभी भी अपने भाग्य और किस्मत को दोष नहीं दूंगा | में जो कुछ भी निश्चय करता हूँ उसको ह्रदय में पक्का और स्थिर कर लेता हूँ | मेरे निश्चय से मुझे कोई नहीं डिगा सकता है | जिनकी इच्छा शक्ति दुर्बल होती है , हिचकिचाते रहते है, और आगे पीछे करते रहते है किन्तु मुझसे यह आदत सर्वथा दूर हो गयी है | और अब में निश्चित सिद्वांत का व्यक्ति हूँ | दूसरो के अनिष्ट विचार मुझे प्रभावित नहीं कर सकते है | जो विचार मेरे सम्मुख उपस्थित होता है उस पर में पूर्ण रूप से विचार करता हूँ और खूब अच्छी प्रकार समझ बूझ कर अपना निश्चय स्थिर करता हूँ | में अपने निश्चय के विरुद्ध कोई काम नहीं करता | में अपने हृदय में किसी भी भ्रम को , संशय शंका को , वहम को , संदेह को कभी स्थान नहीं देता |
कोई भी शुद्र और निकृष्ट विचार मेरे हृदय में आरूढ़ नहीं रह सकता | में परिस्थितियो का दास नहीं हूँ | में कभी भी निश्चित मार्ग से एक कदम भी पीछे नहीं हटता | अप्रिय प्रसंग और परिस्थिति मुझे अपने दृढ निश्चय से चलायमान नहीं कर सकती | संसार की बाहरी वस्तुओ और साधनों पर में आश्रित नहीं रहता | में अपने आप की शक्ति पर ही आश्रित हूँ | मुझे अपने निश्चय में दृढ़ता है , स्थिरता है , इसलिए में अपनी सब मानसिक अवस्थाओ का स्वामी हूँ | में अपने भाग्य का विधाता हूँ | मेरे मानस क्षेत्र में व्यर्थ का मानसिक संग्राम उधम नहीं मचाता | मुझे कोई मानसिक व्यथा परेशान नहीं करती क्यों की परस्पर विरोधी इच्छाए मुझ में नहीं उठती | मेरे अंतर कर्ण में सदा सर्वदा सुमति की पवित्र धरा बहती है और मेरी इच्छा शक्ति को बलवती बना रही है | जिससे में अपने जीवन का स्वामी बन रहा हूँ |
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