Friday, November 25, 2011

Peace in conflict (संघर्ष में शांति)

संघर्ष में शांति

         संघर्ष का नाम हि जीवन है | जिस जीवन ने कभी संघर्स का सामना नहीं किया, और जो व्यक्ति अथवा जाती संघर्ष से डरती रहती है और संघर्स से बचने के लिए दूर रहना चाहती है उसे मृतक के सामानही समझना चाहिए अँग्रेजी की कहावत है की इस प्रकृति के संग्राम में जो बचने के योग्य होता है वह हि बचता है | क्योंकि संग्राम बिना संघर्ष के होना असंभव है | परन्तु साधारण मनुष्ये समझते है संघर्ष तो शांति का घातक है और अशांति का कारण है- यह कहना सर्वथा तो मिथ्या नहीं कहा जा सकता पर इसमें गलती जरुर है, क्योकि बिना संघर्ष के शांति नहीं मिलती किन्तु म्रत्यु की गोद में हि सोना समझिए | नदी में सदा पानी का बहता रहना हि उसकी शोभा है, जहा पानी का स्तोत्र बंद हुवा , उसके जल में दुर्गन्ध आने लगती है | मनुष्ये जीवन भी एक नदी के समान ही है | परन्तु जब उस नदी में बाढ़ आजाया करती है तब हजारों गांवों को बर्बाद भी कर सक्ती है , इसलिए उसका वेग संयम के भीतर ही बहता रहे तो उससे लाखो जीवो को प्राण दान मिलता है | इसी तरह हमारा जीवन संघर्ष संयम की सीमा के भीतर हि रहना चाहिए , जो अपने जीवन में संयम रखना नहीं जानते , उनको तो अशांति का हि मुख देखना पड़ता है | परन्तु संयम युक्त संघर्ष में अशांति कहा ? वह वीर युद्ध क्षेत्र में लड़ता हुवा सदा शांत रह सकता है | इसलिए अब हम यह नतीजा निकालते है कि संयम सहित संघर्ष से शांति और संयम रहित संघर्ष में अशांति होती है | जो मनुष्ये अपने जीवन को अशांत और दुःखपूर्ण पाते है उनको समझ्लेना चाहिए की वे संसार युद्ध में कुसल योधा नहीं है , वे अपने सामर्थ्य और योग्यता से ठीक ठीक काम लेना नहीं जानते, आवेश में आकार या मोहान्ध होकर अपने कार्यों में प्रवर्त होते है ; बुद्धि धैर्य , उत्साह और दूरदर्शिपना नहीं होता | ऐसे लोग मेहनत करते है और उनकी शक्ति बाढ़ आई नदी के भांति व्यर्थ बह जाती है और प्राय: अशांति और दुखो का कारण बन जाती है | संघर्ष से डर कर दूर भागना म्रत्यु का आव्हान करना है | वीर वही है जो संघर्ष का सदा आव्हान करता है और कुशलता पूर्वक उस पर विजय प्राप्त कर आनंद मनाता है | उसके लिए संघर्ष भय की वस्तु नहीं होती वरन वह उसको अपने अमोद प्रमोद का विषय समझता है |

         एक आदमी काम पर अपनी रोती सी सकल लेकर जाता है , मन में उत्साह नहीं होता , शरीर में मनो बल हि नहीं है , कामपर जाकर बैठ कर ऊँघा करता है अथवा अपने फूटे कर्मो को रोया करता है | क्या ऐसे मनुष्ये को शांतिदेवी अपने हास्येपूर्ण आशीर्वादसे भरे कृपाकटाक्ष का पात्र समझ सकती है ? कदापि नहीं | इसके विपरीत दूसरा हँसता कूदता अपने कार्ये को मनोरंजन का विषय समझता है, शौक से, उत्साह से कठिन से कठिन कार्ये को आसानी तुरंत कर डालता है और अपनी कुशलता पर खुस होता है तथा अपने साथियों और मालिकों का भी उत्साह बढा देता है | ऐसे हि मनुष्ये इस संसार संघर्स में रहने के उपयुक्त है और वे हि शांतिदेवी के प्रिये पात्र है , उनको हि जीवित समझाना चाहिए , नहीं तो इस संसार रूपी चक्की से कोई नहीं बच सकता| वीर पुरुष चट्टान के समान दृढ और शांत रहता है जिस पर समुद्र की लहरे हजार बार टक्कर खाती है , और लोट जाती है | इस संसार सागर की विषम लहरे इस धीर मनुष्ये के शांत चित्त को इस प्रकार हिलाने में सफल नहीं होती है | इसलिए यदि आप जीवन में शांति पाना चाहते है तो वीर बनो , धीर बनो, भय मुक्त रहो , संघर्स करो ,इश्वर को साक्षी मान कर अपने कार्ये में स्थिर रहो सफलता आपके कदम चूमेगी |

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