!! करदर्शनम !!
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती !
करमूले तू गोविन्द: (ब्रह्मा:) प्रभाते कर दर्शनम !!
भावार्थ:- हाथ के अगले भाग में
लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती और मूल भाग में गोविन्द बसते है,इसलिए प्रात: काल
उठते ही हाथों का दर्शन करना चाहिए ! ओर साथ ही अपने इष्ट देव का स्मरण करना चाहिए
!
(२) बिस्तर से जमीन पर पैर रखने से
पहले इस श्लोक को बोलकर फिर पैर रखना चाहिए !
समुद्रवसने देवी ! पर्वतस्तनमण्डले !
विष्णुपत्नी ! नमस्तुभ्यम पादस्पर्शम क्षमस्व में !!
भावार्थ:- समुद्ररूपी वस्त्रोवाली,
पर्वतरूपी स्तनवाली और विष्णु भगवान की पत्नी हे पृथ्वी देवी ! तुम्हे नमस्कार
करता हूँ ! तुम्हे मेरे पैरों का स्पर्श होता है इसलिए क्षमायाचना करता हूँ !
No comments:
Post a Comment