मानसिक संयम के साधन
जिस प्रकार वायु में स्पंदन होता है | अग्नि से चिनगारिया निकलती है | जल में तरंग उत्पन्न होती है | मन में संकल्प उठते है, वैसे ही मानसिक संयम से सोई हुई शक्तिया जाग्रत होती है | जब मनुष्ये में मानसिक संयम का अभाव होता है तो वह अपनी शक्तियों को कई विषयों में बिखेर देता है | वह कुछ भी कार्य सफलता पूर्वक नहीं कर सकता | एक एक बूँद जल जब एक ही स्थान पर पड़ता रहता है तो सक्त से सक्त पत्थर को काट देता है और जल्दी जल्दी से जल कि धाराए उस पर पड़ती है, तो उनका नाम निशान तक नहीं रहता | जो व्यक्ति अपनी शक्तियों को बहुतसे विषयों में प्रसार कर देता है , उसमे शक्ती का अभाव हों जाता है , उत्साह मंद हों जाता है और बिना उत्साह के मनुष्ये जीवन में कुछ नहीं कर सकता है |
कोई भी कार्य करो अपनी समग्र शक्तियों को उसमे लगादो और उसको पूर्ण करो | जिस स्थान पर तुम हों या जो कुछ अपने जीवन में कार्य कर रहे हों , उसी के लिए तुम संसार में उत्पन्न हुए हों | तुमको संसार में क्या करना चाहिए | इसके विषय में कोई तुम्हे कुछ कहने वाला नहीं है | तुम जो कुछ कार्य करो जो कुछ कार्य हाथ में लो उसमे सर्वोपरी श्रेष्ट बनने का प्रयत्न करो | एक ही वस्तु के लिए प्रयत्न करो जीवन में एक ही कार्य उत्तम करने का प्रयत्न करो | उसमे अपनी सब शक्तियों को गडा दो | सब वस्तुओ कि प्राप्ति के लिए हाय हाय मत करो | नई नई आशाओ को ह्रदय में बढ़ाते जाओगे तो फल रूप निष्फलता और उद्वेग तुमरे मन में अशांति पैदा कर देंगे |
तुम बुद्धिहीन, भिकारी, और दरिद्र क्यों हों रहे हों ? तुमने अपने आपको ऐसा बनालिया है | तुमने अपने आप को वैसा ही मान लिया है और फिर वो ही तुम होगये हों | समस्त शक्तियों का खजाना तुम्हारे पास है | ज्ञान कि ज्योति तुम्हारे भीतर प्रकाशमान हों रही है फिरभी तुम दरिद्र और अज्ञानी बने हुए अपने जीवन का सर्वनाश कर रहे हों | यह कितना बड़ा आश्चर्य है |
इस सामर्थ्ये के द्वारा मनुष्य जल को स्थल बनादेता है | पहाडियों पर नदिया बहादेता है | हरेभरे वन को उशर भूमि बना देता है | मरुस्थल को हरे भरे वन बनादेता है | अटलांटिक महासागर में राजमार्ग बनादेता है | ऊँचे ऊँचे पर्वतों को धरातल में मिला दिया है | सामर्थ्य से क्या नहीं होसकता ? सामर्थ्य संपन्न मनुष्ये बनो |
मानस-शाश्त्र वेता जेम्स का कथन है कि छोटे से छोटा विचार मष्तिस्क कि रचना पर प्रभाव डालता है | बुरा अथवा भला विचार अपनी छाप मष्तिस्क पर अवश्य अंकित करता है | प्रत्येक विचार जो हमारे मष्तिस्क प्रविष्ट होता है | प्रत्येक शब्द जो हमारे मुह से निकलता है | प्रत्येक कार्य जो हम कर सकते है ये सब हमारे मष्तिस्क पर अमिट प्रभाव डालते है और हमारे चरित्र कि रचना करते है | विचार द्वारा ही हमारे चरित्र का निर्माण होता है | एकही प्रकार के विचार एकही ही विषय पर अधिक समय तक लगाये रखना ही मानसिक संयम से अर्थात विचारों कि एकाग्रता से अपनेही जीवन पर अधिकार करलेता है | हमारा जीवन हमारे विचारों का ही फल है |
बुद्धिमान के लिए विचार करने को छोड़कर दूसरा कोई उपाय नहीं | विचार से ही बुद्धि अशुभ को छोड़कर शुभ को ग्रहण करती है | अनियंत्रित विचारों से मनुष्ये मनोवृत्ति का गुलाम हों जाता है और नियंत्रित विचारों से वह बुराइयो का प्रतिकार कर सकता है प्रत्येक प्रतिकूल प्रसंग का वह हंसकर सामना कर सकता है | अपने ह्रदय को प्रकाश से भरदो | अशांति को दूर करो | शांति का हृदय में आव्हान करो | सत्ये को ह्रदय में स्थान दो | सोदर्ये का चिंतन करो | जीवनकी कटुता और रोग शोक को भूल जाओ | और आरोग्य और आनंद का विचार सीखो | यही अंधकार और अज्ञान को दूर करने का यह सर्वोत्तम मार्ग है |
प्रात:काल उठते ही स्थिर होकर थोड़ी देर बैठ जाओ और उत्तम विचारों का चिंतन और मनन करना आरंभ कर दो | थोड़ी देर के लिए निशेष्ट बैठ जाओ | अपने मन को नि:शंकल्प अवस्था में ले जाओ | कोई भी विचार में मत आनेदो | संकल्प रहित मन को करदो | तुमको अपनी मनोवृति को परिवर्तन करने के लिए सरल युक्ति मालूम हों उसका उपयोग करो | प्रतिकूल भावना को दूर करने कि शक्ती तुम्हारे मन में है | सरल मार्ग तो यह है कि दूषित मनोवृत्ति को दूर करने के लिए उससे संघर्ष मत करो नहीं तो अधिक वेग से बुरे विचार तुम पर आक्रमण करके बुद्धि भ्रष्ट कर देंगे केवल उनके स्थान पर उत्तम मनोवृत्ति को स्थापित करो | इस साधन से विचार का प्रवाह बदल जायेगा |
तुम्हारे मन के उद्वेग और अप्रसन्नता उत्पन्न करने वाली वस्तुओ का कभी चिंतन न करो | विचारों में परिवर्तन करने से तुम अपने जीवन में परिवर्तन कर सकते हों | मन में परिवर्तन करने से जीवन में परिवर्तन हों जाता है | तुम्हारा जन्म दुनिया में कुछ विशेष करने के लिए हुवा है न कि असफलता और दुखी रहने के लिए | अपने ह्रदय में नकारात्मक विचारो को शून्य करदो | आपके अंदर में प्रकाश है उस प्रकाश को सून्ये हृदय में चमकने दो बलवान निश्चयात्मक मनोवृत्ति से मनुष्ये सब कुछ कर सकता है | यही मानसिक संयम का साधन है | जब इस प्रकार मानसिक संयम से मन सुव्यवस्थित हों जाता है और निश्चयात्मक विचार करना हम सीख जाते है तब निषेधात्मक , दुर्बल अव्यवस्थित विचारों का हम पर जरा भी असर नहीं हो सकता |
निश्चयात्मक मनुष्ये ही अपने में और दूसरों में शक्ती का संचार कर सकता है | निश्चयात्मक विचार उत्पादन शक्ती का विकाश कर सकता है | मानसिक संयम द्वारा जिसने अपने शारीर पर शाशन कर लिया है अपनी वासनाओ पर और लालसाओ पर अधिकार कर लिया है ऐसा ही मनुष्ये मानसिक शक्तियों का अधिनायक बन जाता है | इस प्रकार जब मनुष्ये अपनेपर विजय प्राप्त करलेता है वह मानसिक विकारों को दूर करसकता है | पाप पश्चाताप एवं दुःख उसको स्पर्श नहीं कर सकते | बाह्य पदार्थ उस पर अधिकार नहीं कर सकते उसके हृदय में प्रसन्नता का स्तोत्र बहने लगता है | वह समस्त बंधनों से छुटकारा पा जाता है |
ब्रह्मभूत प्रसन्न चित्त मन जो ब्रह्म रूप होगया है अर्थात जिसके भीतर बाहर आगे पीछे आजू बाजु सिवाय ब्रह्म के दूसरी वस्तु का भान नहीं होता है वह सदा प्रसन्न रहता है नातो वह किसी बात का सोच करता है और न किसी वस्तु कि इच्छा करता है | यही ब्रह्मभूत का लक्षण है | जिसमे यह लक्षण प्रकट होने लगे उसे समझना चाहिए कि आत्मज्ञान के मार्ग पर आ पंहुचा है | यही मानशिक संयम का फल है |
कोई भी कार्य करो अपनी समग्र शक्तियों को उसमे लगादो और उसको पूर्ण करो | जिस स्थान पर तुम हों या जो कुछ अपने जीवन में कार्य कर रहे हों , उसी के लिए तुम संसार में उत्पन्न हुए हों | तुमको संसार में क्या करना चाहिए | इसके विषय में कोई तुम्हे कुछ कहने वाला नहीं है | तुम जो कुछ कार्य करो जो कुछ कार्य हाथ में लो उसमे सर्वोपरी श्रेष्ट बनने का प्रयत्न करो | एक ही वस्तु के लिए प्रयत्न करो जीवन में एक ही कार्य उत्तम करने का प्रयत्न करो | उसमे अपनी सब शक्तियों को गडा दो | सब वस्तुओ कि प्राप्ति के लिए हाय हाय मत करो | नई नई आशाओ को ह्रदय में बढ़ाते जाओगे तो फल रूप निष्फलता और उद्वेग तुमरे मन में अशांति पैदा कर देंगे |
तुम बुद्धिहीन, भिकारी, और दरिद्र क्यों हों रहे हों ? तुमने अपने आपको ऐसा बनालिया है | तुमने अपने आप को वैसा ही मान लिया है और फिर वो ही तुम होगये हों | समस्त शक्तियों का खजाना तुम्हारे पास है | ज्ञान कि ज्योति तुम्हारे भीतर प्रकाशमान हों रही है फिरभी तुम दरिद्र और अज्ञानी बने हुए अपने जीवन का सर्वनाश कर रहे हों | यह कितना बड़ा आश्चर्य है |
इस सामर्थ्ये के द्वारा मनुष्य जल को स्थल बनादेता है | पहाडियों पर नदिया बहादेता है | हरेभरे वन को उशर भूमि बना देता है | मरुस्थल को हरे भरे वन बनादेता है | अटलांटिक महासागर में राजमार्ग बनादेता है | ऊँचे ऊँचे पर्वतों को धरातल में मिला दिया है | सामर्थ्य से क्या नहीं होसकता ? सामर्थ्य संपन्न मनुष्ये बनो |
मानस-शाश्त्र वेता जेम्स का कथन है कि छोटे से छोटा विचार मष्तिस्क कि रचना पर प्रभाव डालता है | बुरा अथवा भला विचार अपनी छाप मष्तिस्क पर अवश्य अंकित करता है | प्रत्येक विचार जो हमारे मष्तिस्क प्रविष्ट होता है | प्रत्येक शब्द जो हमारे मुह से निकलता है | प्रत्येक कार्य जो हम कर सकते है ये सब हमारे मष्तिस्क पर अमिट प्रभाव डालते है और हमारे चरित्र कि रचना करते है | विचार द्वारा ही हमारे चरित्र का निर्माण होता है | एकही प्रकार के विचार एकही ही विषय पर अधिक समय तक लगाये रखना ही मानसिक संयम से अर्थात विचारों कि एकाग्रता से अपनेही जीवन पर अधिकार करलेता है | हमारा जीवन हमारे विचारों का ही फल है |
बुद्धिमान के लिए विचार करने को छोड़कर दूसरा कोई उपाय नहीं | विचार से ही बुद्धि अशुभ को छोड़कर शुभ को ग्रहण करती है | अनियंत्रित विचारों से मनुष्ये मनोवृत्ति का गुलाम हों जाता है और नियंत्रित विचारों से वह बुराइयो का प्रतिकार कर सकता है प्रत्येक प्रतिकूल प्रसंग का वह हंसकर सामना कर सकता है | अपने ह्रदय को प्रकाश से भरदो | अशांति को दूर करो | शांति का हृदय में आव्हान करो | सत्ये को ह्रदय में स्थान दो | सोदर्ये का चिंतन करो | जीवनकी कटुता और रोग शोक को भूल जाओ | और आरोग्य और आनंद का विचार सीखो | यही अंधकार और अज्ञान को दूर करने का यह सर्वोत्तम मार्ग है |
प्रात:काल उठते ही स्थिर होकर थोड़ी देर बैठ जाओ और उत्तम विचारों का चिंतन और मनन करना आरंभ कर दो | थोड़ी देर के लिए निशेष्ट बैठ जाओ | अपने मन को नि:शंकल्प अवस्था में ले जाओ | कोई भी विचार में मत आनेदो | संकल्प रहित मन को करदो | तुमको अपनी मनोवृति को परिवर्तन करने के लिए सरल युक्ति मालूम हों उसका उपयोग करो | प्रतिकूल भावना को दूर करने कि शक्ती तुम्हारे मन में है | सरल मार्ग तो यह है कि दूषित मनोवृत्ति को दूर करने के लिए उससे संघर्ष मत करो नहीं तो अधिक वेग से बुरे विचार तुम पर आक्रमण करके बुद्धि भ्रष्ट कर देंगे केवल उनके स्थान पर उत्तम मनोवृत्ति को स्थापित करो | इस साधन से विचार का प्रवाह बदल जायेगा |
तुम्हारे मन के उद्वेग और अप्रसन्नता उत्पन्न करने वाली वस्तुओ का कभी चिंतन न करो | विचारों में परिवर्तन करने से तुम अपने जीवन में परिवर्तन कर सकते हों | मन में परिवर्तन करने से जीवन में परिवर्तन हों जाता है | तुम्हारा जन्म दुनिया में कुछ विशेष करने के लिए हुवा है न कि असफलता और दुखी रहने के लिए | अपने ह्रदय में नकारात्मक विचारो को शून्य करदो | आपके अंदर में प्रकाश है उस प्रकाश को सून्ये हृदय में चमकने दो बलवान निश्चयात्मक मनोवृत्ति से मनुष्ये सब कुछ कर सकता है | यही मानसिक संयम का साधन है | जब इस प्रकार मानसिक संयम से मन सुव्यवस्थित हों जाता है और निश्चयात्मक विचार करना हम सीख जाते है तब निषेधात्मक , दुर्बल अव्यवस्थित विचारों का हम पर जरा भी असर नहीं हो सकता |
निश्चयात्मक मनुष्ये ही अपने में और दूसरों में शक्ती का संचार कर सकता है | निश्चयात्मक विचार उत्पादन शक्ती का विकाश कर सकता है | मानसिक संयम द्वारा जिसने अपने शारीर पर शाशन कर लिया है अपनी वासनाओ पर और लालसाओ पर अधिकार कर लिया है ऐसा ही मनुष्ये मानसिक शक्तियों का अधिनायक बन जाता है | इस प्रकार जब मनुष्ये अपनेपर विजय प्राप्त करलेता है वह मानसिक विकारों को दूर करसकता है | पाप पश्चाताप एवं दुःख उसको स्पर्श नहीं कर सकते | बाह्य पदार्थ उस पर अधिकार नहीं कर सकते उसके हृदय में प्रसन्नता का स्तोत्र बहने लगता है | वह समस्त बंधनों से छुटकारा पा जाता है |
ब्रह्मभूत प्रसन्न चित्त मन जो ब्रह्म रूप होगया है अर्थात जिसके भीतर बाहर आगे पीछे आजू बाजु सिवाय ब्रह्म के दूसरी वस्तु का भान नहीं होता है वह सदा प्रसन्न रहता है नातो वह किसी बात का सोच करता है और न किसी वस्तु कि इच्छा करता है | यही ब्रह्मभूत का लक्षण है | जिसमे यह लक्षण प्रकट होने लगे उसे समझना चाहिए कि आत्मज्ञान के मार्ग पर आ पंहुचा है | यही मानशिक संयम का फल है |
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